खो-खो खेल का इतिहास - संक्षिप्त परिचय
- Repoter 11
- 30 Apr, 2024
खो-खो खेल का भारत से प्राचीन संबंध है क्योंकि खो-खो भारत का ही स्वदेशी खेल है परंतु विदेशों में भी बहुत ही ज़्यादा प्रचलित है। यह खेल युवाओं को बहुत भाता है। इस खेल को खेलने के लिए शरीर का तंदुरुस्त और चुस्त होना आवश्यक है तभी इस खेल को खेलना सम्भव हो पाता है।
खो खो का जन्मस्थान पुणे कहा जाता है। भारत के अन्य प्रदेशों में भी इसका प्रचार अब बढ़ रहा है। यह खेल सरल है और इसमें कोई खतरा नहीं है। पुरुष और महिलाएँ दोनों समान रूप से इस खेल को खेल सकते हैं।पहले इस खेल का कोई व्यवस्थित नियम न था। खेल की लोकप्रियता के साथ इसके नियम बनते-बिगड़ते रहे।1914 ई. में पहली बार पुणे के डकन जिमखाना ने अनेक मैदानी खेलों के नियम लिपिबद्ध किए और उनमें खो-खो भी था। तब से उसके बनाए नियम के अनुसार, थोड़े स्थानीय हेर-फेर के साथ यह खेल खेला जाता है।
इस खेल में मैदान के दोनो ओर दो खम्भो के अतिरिक्त किसी अन्य साधन की जरूरत नहीं पड़ती। यह एक अनूठा स्वदेशी खेल है, जो युवाओं में ओज और स्वस्थ संघर्षशील जोश भरने वाला है। यह खेल पीछा करने वाले और प्रतिरक्षक, दोनों में अत्यधिक तंदुरुस्ती, कौशल, गति और ऊर्जा की माँग करता है। खो-खो किसी भी तरह की सतह पर खेला जा सकता है।खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका उद्भव प्रागैतिहासिक भारत में माना जा सकता है। मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी।
खो-खो खेल में न किसी गेंद की आवश्यकता होती है, न बल्ले की। इसके लिये केवल 111 फुट लंबे और 51 फुट चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है। दोनों और दस-दस फुट स्थान छोड़कर चार चार फुट ऊँचे, लकड़ी के दो खंभे गाड़ दिए जाते हैं और इन खंभों के बीच की दूरी आठ बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित कर दी जाती है कि दोनों दलों के खिलाड़ी एक दूसरे की विरुद्ध दिशाओं की ओर मुँह करके अपने अपने नियत स्थान पर बैठ जाते हैं।
खो-खो की पहली प्रतियोगिता पुणे के जिमखाने में 1918 ई॰ में हुई। फिर सन् 1919 में बड़ौदा के जिमखाने में भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। तब से समय-समय पर इस खेल की अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं।
खेल का मैदान खो-खो का क्रीड़ा क्षेत्र आयताकार होता है। यह 27 X 16 मीटर का होता है। मैदान के अंत में दो मुक्त आयताकार क्षेत्र होते हैं। आयताकार की भुजा 16 मीटर और दूसरी भुजा 1.50 मी॰ होती है। इन दोनों आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम्भ होते हैं। केन्द्रीय गली 24 मी॰ लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है।
खो-खो मैच के एक पाली में चार खिलाड़ी होते हैं और टीम में पांच खिलाड़ी होते हैं। खेल में छह अतिरिक्त खिलाड़ी भी होते हैं। पुरुष पोल की ऊँचाई 1.2 मीटर और महिला पोल की 1 मीटर होती है। पुरुष पोल का व्यास 10 से 11 सेमी होता है, और महिला के पोल को 8 से 9 सेमी रखते हैं।
दौड़ने या चेज़र बनने का निर्णय टॉस द्वारा किया जाता है।।एक धावक (चेज़र) के अतिरिक्त अन्य सभी धावक वर्गों में इस प्रकार बैठते हैं कि दो साथ-साथ बैठे धावकों का मुँह एक ओर नहीं होगा। नौंवा धावक पीछा करने के लिए किसी एक स्तम्भ के पास खड़ा रहता है ।सक्रिय धावक के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रीय गली से स्पर्श नहीं करना चाहिए।। वह स्तम्भों में अन्दर से केन्द्रीय रेखा पार नहीं कर सकता। ''खो'' बैठे हुए धावक के पीछे से समीप जा कर ऊँची और स्पष्ट आवाज़ में देनी पड़ती है । बैठा हुआ धावक बिना ''खो'' प्राप्त किए नहीं उठ सकता और न ही वह अपनी टाँग या भुजा फैला कर स्पर्श प्राप्त करने की कोशिश कर सकता है।यदि कोई सक्रिय धावक उस वर्ग की केन्द्रीय गली से बाहर चला जाए जिस पर कोई धावक बैठा है या यदि वह निष्क्रिय धावक की पकड़ छोड़ देता है तो सक्रिय धावक उसे खो नहीं देगा। कोई सक्रिय धावक ''खो'' देने के लिए वापस नहीं आ सकता।नियमों के उल्लंघन को फाऊल कहते हैं। इस पर सक्रिय धावक उस दिशा के विपरीत जाने के लिए बाध्य किया जाता है जिस दिशा में वह जा रहा था। अंपायर की सीटी के संकेत के साथ सक्रिय धावक सांकेतिक दिशा की ओर चल देता है । यदि इस तरह रनर आउट हो जाता है तो उसे आउट नहीं माना जाता है।सक्रिय धावक को ''खो'' देने के पश्चात तुरंत ''खो'' पाने वाले धावक का स्थान ग्रहण कर लेना चाहिए । खो देना और साथ बैठे धावक के लोना एक साथ होना चाहिए।ठीक खो लेने के पश्चात यदि सक्रिय धावक का पहला क़दम सैंटर लेन को छूता हो तो वह फाऊल नहीं है। यदि केंद्रीय लेन को क्रॉस करे तो वह फाऊल होता है ।दिशा लेने के पश्चात सक्रिय धावक पुन: क्रॉस लाइन में आक्रमण कर सकता है और इस को फाऊल नहीं माना जाता है।सक्रिय धावक वह दिशा ग्रहण करता है जिस ओर उसका मुँह हो अर्थात् जिस ओर उसने अपने कन्धे की रेखा को मोड़ा है।सक्रिय धावक किसी एक स्तम्भ की ओर दिशा ग्रहण करने के पश्चात स्तम्भ रेखा की उसी दिशा में जाएगा जब तक वह खो नहीं करता। सक्रिय धावक केन्द्र गली से दूसरी ओर नहीं जा सकता जब तक कि वह स्तम्भ के चारों ओर बाहर से न घूम ले।यदि कोई सक्रिय धावक स्तम्भ छोड़ देता है तो वह स्तम्भ छोड़ने वाले स्थान की ओर वाली केन्द्रीय लेन पर रहते हुए दूसरे स्तम्भ की दिशा में जाना पड़ेगा।सक्रिय धावक का मुँह सदैव उसके द्वारा ग्रहण की गई दिशा की ओर ही रहेगा। वह अपने मुँह को मोड़ नहीं सकता । उसे केन्द्रीय लेन के समानांतर कंधे की रेखा मोड़ने की आज्ञा होती है।धावक इस प्रकार बैठेते हैं कि धावकों के मार्ग में रुकावट न पहुँचे यदि ऐसी रुकावट से कोई रनर आउट हो जाता है तो उसे आउट नहीं माना जाता है।
नियम
दिशा ग्रहण करने वाले और मुँह मोड़ने वाले नियम आयताकार क्षेत्र में लागू नही होते हैं।।पारी के दौरान सक्रिय धावक सीमा से बाहर जा सकता है परंतु सीमा से बाहर उसे दिशा लेने और मुँह मोड़ने के नियमों का पालन करना होता है ।कोई भी रनर बैठे हुए धावक को छू नहीं सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे चेतावनी दी जाती है। यदि वह फिर उस हरकत को दोहराता है तो उसे मैदान से बाहर भेज दिया जाता है। अभिप्राय यह कि आउट दिया जाता है।यदि रनर के दोनों पैर सीमा से बाहर हों तो वह आउट हो जाता है।यदि सक्रिय चेज़र बिना किसी नियम का उल्लंघन किए रनर को छू लेता है तो रनर आउट माना जाता है । इन नियमों का उल्लंघन फाऊल माना जाता है। यदि ऐसे फाऊल के कारण कोई रनर आउट हो जाता है तो उसे आउट नहीं माना जाता है ।यदि कोई सक्रिय धावक नियम 8 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन करते है तो अम्पायर तुरंत ही उचित दिशा लेने और कार्य करने के लिए बाध्य हो जाता है। मैच सम्बन्धी नियम प्रत्येक टीम में खिलाड़ियों की संख्या 9 होती है और 3 खिलाड़ी अतिरिक्त होते हैं।प्रत्येक पारी में 9-9 मिनट छूने तथा दौड़ने का काम बारी-बारी से होता है। प्रत्येक मैच में 4 पारियाँ होती है। दो पारियों छूने की और 2 पारियाँ दौड़ने की होती हैं।रनर खेलने के क्रमानुसार स्कोरर के पास अपने नाम दर्ज कराते हैं । पारी के आरम्भ में पहले तीन खिलाड़ी सीमा के अन्दर होते हैं। इन तीनों के आउट होने के पश्चात तीन और खिलाड़ी ''खो'' देने से पहले अन्दर आ जाते हैं। जो इस अवधि में प्रवेश नहीं कर पाते हैं उन्हें आउट घोषित किया जाता है। अपनी बारी के बिना प्रविष्ट होने वाला खिलाड़ी को भी आउट घोषित कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया पारी के अंत तक जारी रहती है। तीसरे रनर को निकालने वाला सक्रिय धावक नए प्रविष्ट होने वाले रनर का पीछा नहीं करता, वह खो देता है। प्रत्येक टीम खेल के मैदान के केवल एक पक्ष से ही अपने रनर प्रविष्ट करती है।धावक तथा प्रत्येक रनर समय से पहले भी अपनी पारी समाप्त कर सकते हैं। केवल धावक या रनर टीम के कप्तान के अनुरोध पर ही अम्पायर खेल रोक कर पारी समाप्ति की घोषणा कर सकता है । एक पारी के बाद 5 मिनट तथा दो पारियों के बीच 9 मिनट का ब्रेक दिया जाता है।धावक पक्ष को प्रत्येक रनर के आउट होने पर एक अंक प्राप्त होते हैं।। सभी रनरों के समय से पहले आउट हो जाने पर उनके विरुद्ध दे दिया जाता है। इसके पश्चात वह टीम उसी क्रम से अपने रनर भेजती है। लोना प्राप्त करने के लिए कोई अतिरिक्त अंक नहीं दिया जाता है। पारी का समय समाप्त होने तक इसी ढंग से खेल जारी रहता है। पारी के दौरान रनरों के क्रम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।नॉक आउट पद्धति में मैच के अंत में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित कर दिया जाता है। अंक बराबर होने पर एक और पारी खेलना पड़ता है। यदि फिर भी अंक बराबर रहते हैं तो टाई ब्रेकर नियम का प्रयोग किया जाता है। इस स्थिति में यह ज़रूरी नहीं है कि टीमों में वहीं खिलाड़ी हों जिन्होंने अभी खेला है।लीग प्रणाली में विजेता टीम को 2 अंक प्राप्त होते हैं। पराजित टीम को शून्य अंक तथा बराबर रहने की दशा में प्रत्येक टीम को एक एक अंक बाँट दिया जाता है। यदि लीग प्रणाली में लीग अंक बराबर हो तो टीम अथवा टीमें पर्चियों के आधार पर पुन: मैच खेलती हैं । ऐसे मैच नॉक-आऊट प्रणाली के आधार पर खेलें जाते हैं।यदि किसी कारणवश मैच पूरा नहीं होता है तो यह किसी अन्य समय खेला जाएगा परंतु पिछले अंक नहीं गिने जाते हैं। मैच शुरू से ही खेला जाता है ।यदि किसी एक टीम के अंक दूसरी टीम से 12 या उससे अधिक हो जाएं तो पहली टीम दूसरी टीम को धावक के रूप में पीछा करने को कह सकती है। यदि दूसरी टीम इस बार अधिक अंक प्राप्त कर ले तो भी उसका धावक बनने का अधिकार बना रहता है। मैच की सुचारू रूप से व्यवस्था बनाये रखने के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।
(i) अम्पायर - लॉबी से बाहर खड़ा होता है और केन्द्रीय गली द्वारा विभाजित स्थान से खेल की देख रेख करता है ।इनकी ज़िम्मेदारी होती है की इन्हें अपने अर्द्धक के सभी निर्णय देना होता है।। वह निर्णय देने में दूसरे अर्द्धक के अम्पायर की सहायता भी कर सकता है।
(ii) रैफरी साधारणत- रैफ़री अम्पायरों की उनके कर्त्तव्य पालन में सहायता करता है और उनमें किसी भी प्रकार के मतभेद होने की दशा में अपना फैसला देता है।खेल में बाधा पहुँचाने वाले, असभ्य व्यवहार करने वाले नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ियों को दण्ड भी देने का अधिकार होता है। किसी भी प्रकार के नियमों की व्याख्या सम्बन्धी प्रश्नों पर भी अपना निर्णय देता है।
(iii) टाइम-कीपर -टाइप-कीपर का काम समय का रिकार्ड रखना है। वह सीटी बजाकर पारी के आरम्भ या समाप्ति का संकेत देता है।
(iv) स्कोरर स्कोरर इस बात का ध्यान रखता है कि खिलाड़ी निश्चित क्रम से ही मैदान में उतरें। वह आउट हुए रनरों का रिकार्ड रखता है। प्रत्येक पारी के अंत में वह स्कोर शीट पर अंक दर्ज करता है और धावकों का स्कोर तैयार करता है। मैच के अंत में वह परिणाम तैयार करता है और रैफरी को सुनाने के लिए देता है।
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