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भारतीय कुश्ती और नियम

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भारतीय कुश्ती का इतिहास

भारतीय कुश्ती पहलवानी और पहलवान दोनों को संदर्भित करती है। भारतीय कुश्ती पारंपरिक रूप से अखाड़े में दो पहलवानों के बीच खेला जाने वाला खेल है। इसका अभ्यास भी अखाडे में ही किया जाता है।, एक ऐसा स्थान है जहाँ इसका प्रभावी ढंग से अभ्यास किया जाता है। पहलवान अपने या उस्ताद द्वारा बनाये गये कठोर नियम का पालन करते हुए अपने को बड़े कुश्ती के लिए तैयार करते हैं।देश में पारंपरिक रूप से अखाड़े में होने वाले कुश्तियों की संख्या गिरती जा रही है। अब मिट्टी की जगह कुश्ती गद्दों पर होने लगा है और एक तरह से ग्लैमर की तरफ़ ज़्यादा झुकाव होने लगा है। अंतरराष्ट्रीय रूप से वास्तविक पहलवानी लुप्त प्राय सी हो गई है परंतु अभी भी देश के कोने कोने में अखाड़े और मिट्टी के ऊपर होने वाली कुश्तियाँ काफ़ी लोकप्रिय हैं। , कुश्ती या पहलवानी कहा जाता है कि यह माल्युथम के कला की एक शाखा है। कुश्ती में मुख्य रूप से प्रतिद्वंद्वी की पीठ और कंधे को ज़मीन पर लगाने की प्रतिद्वंद्विता है।

कुश्ती का इतिहास काफ़ी प्राचीन है। भारतीय कुश्ती की पारंपरिक शैली सदियों पुरानी है।अभी की पारंपरिक कुश्ती मुगलों के जमाने से शुरू हुई ऐसा माना जाता है। तुर्क-मंगोल वंश के थे और देश पर कब्ज़ा करने के बाद मार्शल आर्ट मल्ल-युद्ध को ईरानी और मंगोलियाई कुश्ती के साथ जोड़कर आज की कुश्ती का खेल बनाया। मुग़ल बादशाह बाबर पहलवान था और उसने कुश्ती खेल को नये रूप में देश में प्रचारित करा। मराठा शासकों द्वारा कुश्ती को बढ़ावा मिला। उन्होंने पुरस्कार राशि की पेशकश से लोगो के बीच सी प्रचलित करने का प्रयास किया। धीरे धीरे प्रत्येक मराठा छोटा या बड़ा कुश्ती लड़ने में सक्षम हो गया था। राजकुमारों और राजाओं द्वारा कुश्ती को प्रमुखता से बढ़ावा दिया गया। राजपूतों को कुश्ती देखना बहुत पसंद था उन्होंने इसमें बहुत दिलचस्पी ली और खेला।और साहस के साथ खेला। गामा पहलवान को अभी भी बातचीत में याद किया जाता है जहां ताक़त की बात आती है। कुश्ती को क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे दंगल, पहलवानी, मल्लयुद्ध, भारतीय कुश्ती, गट्टा गुष्ठी इत्यादि। इनके अपने अपने नियम हैं। मैच शुरू होने से पहले दोनों खिलाड़ियों को दर्शकों से परिचित कराया जाता है। अखाड़े को दर्शक दीर्घा से दूर बनाया जाता है तथा उसकी चौड़ाई कम से कम 14 फीट रखी जाती है। आकार गोल या चौकोर दोनों हो सकती है। प्रारंभ में दोनों पहलवान अपने-अपने शरीर पर कुछ मिट्टी फेंककर अपने को तैयार करते है और इसी दौरान प्रतिद्वंदी का जायज़ा लेते है तथा मात देने की रणनीति भी मन ही मन बनाते हैं। साधारतया कुश्ती 20 से 30 मिनट तक ही चलती है परंतु स्थान और लोगो की माँग पर समय कम या ज़्यादा भी कभी कभी कर दी जाती है। यदि दोनों पहलवान सहमत हों तभी कुश्ती की की अवधि बढ़ाई जा सकती है।कुश्ती के दौरान प्रतिद्वंद्वी को मुक्का या लात नहीं मारी जा सकती है। पहलवान को अखाड़े के घेरे के अंदर ही रह कर कुश्ती करनी होती है। जीत हार का निर्णय प्रतिद्वंद्वी के दोनों कंधों को एक साथ जमीन पर जो पहले लगा देता है वही विजयी होता है। कुश्ती की इस शैली में कोई अंक प्रणाली नहीं होती है। दो जज एक बोर्ड पर बैठते हैं और अखाड़े के अंदर एक मैनेजर होता है जो देखरेख करता है। कुश्ती, मालाखरा, गंडो मकाल पाला, नागा कुश्ती, मुकना, इनबुआन, गट्टा गुस्थी और किरीप उन प्रदर्शन कलाओं में से है। भारतीय उपमहाद्वीप में कुश्ती का इतिहास समृद्ध और विविध है। कुश्ती भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।

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