रावण की वंशावली

- Repoter 11
- 23 Dec, 2023
मर्यादापुरू षोत्तम भगवान रामचन्द्र जी के बारे में तो सर्वविदित है। शास्त्रों के अनुसार रावण महा ज्ञानी और ईश्वर का महा भक्त था। शास्त्रोनुक्तानुसार इसी कारण राम चन्द्र जी ने रावण के अंतिम समय में अपने छोटे भई लक्ष्मण से कहा था कि वो रावण के पास जायें। ग्रंथों और पुस्तकों में रावण के बारे में इतने कुछ आसानी से नहीं प्राप्त होता है और शायद इसी कारण साधारणतः बहुत कुछ नहीं ज्ञात है बस केवल वही से कुछ मिलता है जहां भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम से जुड़ी विवेचना हैं। रावण के माता पिता का नाम बहुत कम लोग जानते हैं। रावण के माता पिता बहुत प्रसिद्ध थे और उनका पूरा वंश विवरण कहीं कहीं हमारे ग्रंथों में उपलब्ध हो जाता है। उनसे ही उद्धृत प्रस्तुत है:
रावण के पिता का वंश
ब्रह्मा के पुत्र हुए महर्षि पुलत्स्य, जो सप्तर्षियों में से एक थे। पुलत्स्य ने दो विवाह किए, पहली दक्ष कन्या प्रीति से और दूसरी कर्दम ऋषि की पुत्री हाविर्भूवा से। हाविर्भूवा से इन्हें विश्रवा नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। विश्रवा के भी दो विवाह हुए, महर्षि भारद्वाज की पुत्री इडविला और राक्षसराज सुमाली की पुत्री कैकसी से। कैकसी से ही विश्रवा को रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा की प्राप्ति हुई। इस प्रकार ब्रह्मा से चौथी पीढ़ी में रावण का जन्म हुआ। इडविला से विश्रवा को कुबेर की प्राप्ति हुई जो रावण का बड़ा भाई था।
माता का वंश
ब्रह्मा से हेति और प्रहेति नामक दो राक्षसों ने जन्म लिया। इन्हीं दोनो से राक्षस वंश की शुरूआत हुई। प्रहेति तपस्यारत हुआ और हेति ने यम की बहन भया से विवाह किया जिससे उसे विद्युत्केश नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। विद्युत्केश ने संध्या की पुत्री सलकांटका से विवाह किया जिससे उन्हें सुकेश नामक पुत्र प्राप्त हुआ। इस पुत्र को इन दोनों ने त्याग दिया, तब भगवान शंकर और माता पार्वती ने इसे गोद लिया। तब से ये शिवपुत्र भी कहलाया। सुकेश का विवाह ग्रामणी गंधर्व की कन्या देववती से हुआ। इससे उसे तीन पराक्रमी पुत्र माल्यवान, सुमाली और माली की प्राप्ति हुई। माल्यवान ने सुंदरी से विवाह किया जिससे उसे वज्रमुष्टि, विरुपाक्ष, दुर्मुख, सुप्तघन, यज्ञकोप, मत्त और उन्मत्त नामक सात पुत्र और अनला नामक एक पुत्री हुई। सुमाली ने केतुमती से विवाह किया जिससे उसे प्रहस्त, अकम्पन्न, विकट, कालिकामुख, धूम्राक्ष, दण्ड,सुपार्श्व, संह्लादि, प्रघस और भासकर्ण नामक दस पुत्रों और राका, पुष्पोत्कटा, कैकसी और कुंभीनसी नामक चार पुत्रिओं की प्राप्ति हुई। माली ने वसुदा से विवाह किया और उसके अनल, अनिल, हर और सम्पाति नामक चार निशाचर पुत्र हुए। इनमे से सुमाली की पुत्री कैकसी का विवाह पुलत्स्य पुत्र विश्रवा से हुआ जिससे उन्हें रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पनखा की प्राप्ति हुई। इस प्रकार माता की ओर से ब्रह्मा से सातवीं पीढ़ी में रावण का जन्म हुआ। रावण के पिता विश्रवा सबसे प्रसिद्ध ऋषियों में से एक थे।
रावण द्वारा भगवान शिव की स्तुति
एक बार नारद जी फिर से लंका आये, रावण ने उनकी बहुत अच्छी सेवा की, नारद जी ने रावण को कहा “सुना है महादेव से बल पाए हो रावण ने कहा हाँ आपकी बात सही है. नारद ने कहा कितना बल पाए. रावण ने कहा यह तो नहीं पता परंतु अगर मैं चाहूँ तो पृथ्वी को हिला डुला सकता हूँ. नारद ने कहा तब तो आपको उस बल की परीक्षा भी लेनी चाहिये क्युँकि व्यक्ति को अपने बल का पता तो होना ही चाहिये. रावण को नारद की बात ठीक लगी और सोच के बोला महर्षि अगर मैं महादेव को कैलाश पर्वत सहित ऊठा के लंका में ही ले आता हूँ ये कैसा रहेगा? इससे ही मुझे पता चला जायेगा कि मेरे अंदर कितना बल है.
नारद जी ने कहा विचार बुरा तो नहीं है और उसके बाद चले गये. एक दिन रावण भक्ति और शक्ति के बल पर कैलाश समेत महादेव को लंका में ले जाने का प्रयास किया. जैसे ही उसने कैलाश पर्वत को अपने हाथों में ऊठाया तो देवि सती फिसलने लगी, वो जोर से बोली ठहरो-ठहरो !
इसके उन्होंने महादेव से पूछा कि भगवन ये कैलाश क्युँ हिल रहा है महादेव ने बताया रावण हमें लंका ले जाने की कोशिस में है. रावण ने जब महादेव समेत कैलाश पर्वत को अपने हाथों में ऊठाया तो उसे बहुत अभिमान भी आ गया कि अगर वो महादेव सहित कैलाश पर्वत को ऊठा सकता है तो अब उसके लिये कोई अन्य असम्भव भी नहीं और रावण जैसे ही एक कदम आगे रखा तो उसका बैलेंस डगमगाया लेकिन इसके बाद भी वो अपनी कोशिस में लगा रहा और इतने में देवि स रावण को श्राप दे दिया कि “अरे अभिमानी रावण तु आज से राक्षसों में गिना जाएगा क्युँकि तेरी प्रकृति राक्षसों की जैसी हो गई है और तु अभिमानी हो गया है.
रावण ने देवि सती के शब्दों पर फिर भी ध्यान नहीं दिया तब भगवान शिव ने अपना भार बढाना शुरु किया और उस भार से रावण ने कैलाश पर्वत को धीरे से उसी जगह पर रखना शुरु किया और भार से उसका एक हाथ दब गया और वो दर्द से चिल्लाया उसके चिल्लाने की आवाज स्वर्ग तक सुनाई दी और वो कुछ देर तक मूर्छित हो गया और फिर होश आने पर उसने भगवान महादेव की सुंदर स्तुती की
भोलेनाथ ने स्तुति से प्रसन्न होके उससे कहा कि रावण यद्यपि मैं नृत्य तभी करता हूँ जब क्रोध में होता हूँ, इसलिये क्रोध में किये नृत्य को तांडव नृत्य नाम से संसार जानता है. किंतु आज तुमने अपनी इस सुंदर स्रोत से और सुंदर गायन से मेरा मन प्रसन्नता पूर्वक नृत्य करने को हो गया.
रावण द्वारा रचित और गाया हुआ यह स्रोत शिव तांडव स्रोत कहलाया क्युँकि भगवान शिव का नृत्य तांडव कहलाता है परन्तु वह क्रोध मे होता है लेकिन इस स्रोत में भगवान प्रसन्नता पूर्वक नृत्य करते हैं. इसके उपरांत भगवान शिव ने रावण को प्रसन्न होके चंद्रहास नामक तलवार दी, जिसके हाथ में रहने पर उसे तीन लोक में कोई युद्द में नहीं हरा सकता था।
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Hayley Bidwill
To the yuvahastakshar.com administrator, Your posts are always well-structured and logical.