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आग के बिना धुआँ: ई-सिगरेट जानलेवा है

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बच्चों और युवाओं को धूम्रपान की तरफ़ आकर्षित करने के लिए ई- सिगरेट विभिन्न आकारों और आकृतियों में आती है। कैंडी, फल, शराब जैसी विविधता, रंग और स्वाद के साथ किशोरों की नई पीढ़ी को निकोटीन की लत डाल रहे हैं। नये जमाने के इस नये चलन को ई-सिगरेट, ई-हुक्का, मॉड्स, वेप पेन, वेप्स, टैंक सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है।कुछ ई-सिगरेट, सामान्यतः धूम्रपान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सिगरेट, सिगार या पाइप की तरह दिखते हैं। आकर्षण बढ़ाने के लिए अब कंपनियों ने कई ई- सिगरेट डिवाइस अब पेस्टल शेड्स या चमकीले रंगों में भी बाज़ार में उतार दिया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2019 से इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के निर्माण, बिक्री और विज्ञापन करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन ग्रे मार्केट की बदौलत हर चीज की तरह ई- सिगरेट भी उपलब्ध है। लुका छिपी से कही ना कहीं मिल ही जाता है।ऑनलाइन बिक्री की सुविधा ने किशोरों को जब चाहें तब सामान प्राप्त करने में भी मदद की है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों पर वर्ष 2023 में प्रतिबंध को सख़्ती से लागू करने पर जोर दिया है। लेकिन युवा, स्कूली लड़कों को आमतौर पर पार्कों और सार्वजनिक स्थानों पर इसका लुत्फ़ लेते देखा जा सकता है। ये युवा, स्कूल जाने वाले लड़के क़ीमत ज़्यादा होने के कारण कभी कभी इसे खरीदने और वेप करने और इसे साझा इस्तेमाल करने के लिए आपस में पैसे इकट्ठा करते हैं और फिर इस का नशा करते देखे जा सकते है।

ई - सिगरेट को वेप - पेन या मॉड भी कहा जाता है। ये बैटरी से चलने वाले उपकरण हैं जो किसी तरल पदार्थ को तब तक गर्म करते हैं जब तक वह धुंआँ में न बदल जाए। इसे साँस के साथ फेफड़ों में ले जया जाता है। यही आनंद देता है। एरोसोल में निकोटीन, हानिकारक रसायन और स्वाद देने वाले एजेंट होते हैं। कुछ ई-सिगरेट में मारिजुआना भी मिली होती है। इन सभी की बिक्री अवैध है। आम तौर पर ये अमेरिका, मलेशिया और चीन से आयात किए जाते हैं और प्रति डिवाइस रुपये 1800/- से 6,000/- रुपये में मिल जाते हैं। लागत के आधार पर उपकरण या तो पुन: इस्तेमाल या एक बार के इस्तेमाल के लिये होते हैं। नए मॉडलों में लंबे समय तक चलने वाली बैटरी, वायु प्रवाह को कंट्रोल करने वाले उपकरण से लैस और विभिन्न प्रकार के स्वाद के होते हैं। ये उपकरण विभिन्न आकर्षक रंग रूप और डिज़ाइन में युवाओं को आकर्षित करने के ध्येय से बनाये जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि बच्चे जब 13/14 वर्ष के होते हैं तो उनमें बहुत कुछ नया जान ने की इच्छा प्रबल होती है और ये वही उम्र है जब बच्चे शुरू में 13 या 14 वर्ष की उम्र में वेपिंग करना शुरू कर देते हैं। इस से उन्हें रोमांच आता है एक नया एहसास होता है और धीरे धीरे माता-पिता या शिक्षकों की पकड़ से बचते हुए इसके आदी हो जाते हैं। प्रारंभ में माता-पिता या शिक्षकों को इसका इल्म ही नहीं हो पाता। जब इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और इलाज करना बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि इनके अंदर निकोटीन, फेफड़ों में गहराई तक जाने वाले अति सूक्ष्म कण, फेफड़ों की गंभीर बीमारी से जुड़े स्वाद देने वाले रसायन, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, कैंसर पैदा करने वाले रसायन, टिन और लेड जैसी भारी धातुएं जैसे हानिकारक पदार्थ होते हैं।

ई-सिगरेट लॉबी का कहना है कि ये साधारण इस्तेमाल किए जाने वाले सिगरेट से कम हानिकारक हैं। उनके अनुसार नियमित सिगरेट के धुएं में 7,000 रसायनों के घातक मिश्रण होते है जबकि एरोसोल में कम जहरीले रसायन होते हैं। उनका यह भी कहना है कि विशेषज्ञों द्वारा नियमित सिगरेट छुड़ाने के लिए इसके इस्तेमाल की अनुशंसा की जाती है। तो फिर यह कैसे नुक़सानदेह हुआ। इन आरोपों प्रत्यारोपों के बीच यह तो सत्य है की इसका इस्तेमाल युवा तथा बच्चों पर बुरा असर डालता है।स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि एरोसोल सुरक्षित नहीं हैं। इनमें निकोटीन, लेड जैसी भारी धातुएं, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और कैंसर पैदा करने वाले एजेंट सहित हानिकारक पदार्थ होते हैं। इसके साथ ही उनका कहना है कि ई-सिगरेट बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिए कतयी सुरक्षित नहीं है।यह दावा कि ये उत्पाद कम लत वाले हैं या इतने खतरनाक नहीं हैं, ग़लत है।

दुर्भाग्य से यदि बच्चा इस लत में फंस जाता है तो उसे छोड़ने के लिए प्रेरित करना बेहतर है और पेशेवर मदद लेना भी बेहतर सिद्ध होगा।उनको यह भी समझाया जा सकता है की इसके सेवन से स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं और लत की समस्या पर खेल के प्रदर्शन में कमी, चिंता और अवसाद में वृद्धि इत्यादि होने लगते है जो आगे जीवन में कई अन्य परेशानी खड़े कर देते हैं।

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