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पीढ़ी दर पीढ़ी उपयोग में आने वाले कुछ घरेलू उपाय

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शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके तथा घर में साधारणतया उपलब्ध सामग्री से इलाज करने की अपने देश में प्राचीन परम्परा हैं। वेदों में तथा ऋषि मुनियों द्वारा ऐसे कई उदाहरण प्राप्त होते हैं जिनमे घर में आसानी से उपलब्ध वस्तुओं से तैयार दवाइयों, लेप तथा काढ़े से उपचार होते हैं। फल, सब्जियां, मसालों, जड़ी बूटियों यह तक की घास से भी उपचार किए गए हैं।

साधारतया सामान्य बीमारियों से निपटने के लिए उपचार हर भारतवासी की रसोई में उपलब्ध सामग्री से तैयार करना सम्भव है। इन के उपयोग से शरीर में आवश्यक प्रतिरोध क्षमता का भी विकास होता है तथा ये सस्ते भी रहते है। भारत ग्राम प्रधान देश है और अभी भी स्वास्थ्य संबंधित उतना विकास नहीं हुआ है कि प्रत्येक शहर और ज़िले में अच्छी से अच्छी सुविधा उपलब्ध हो पाये। कुछ यातायात की भी समस्या किसी ना किसी सुदूर क्षेत्र में है तो ऐसे में घरेलू नुक़्स साधारण बीमारियों के लिए सामयिक और अनुकूल लगती है। वैसे भी देश में आयुर्वेद, प्राकृतिक तथा होमियोपैथिक विधा को ऐलोपैथिक के साथ ही प्रोत्साहित किया जा रहा है। सोशल मीडिया के जमाने में तरह तरह के नुस्ख़े जो साधारतया सभी को नहीं प्राप्त थे अब उपलब्ध है पर किसी विशेषज्ञ के देख रेख में ही उपचार हो तो गलती या परिस्यस्थ्य कारण किसी घटना से बचा जा सकता है।विश्व ने अभी हाल में ही कोरोना का वीभत्स रूप देखा है। पूरे विश्व में यह बात सच पायी गई की अपने देश के लोगों की इमेन्यूटी अन्य देशों की तुलना में अधिक पायी गयी और प्रारम्भिक व्यवस्था इमेन्यूटी बढ़ाने का घरों में उपलब्ध सामग्री से ही किया गया। तुलसी दल हो, हल्दी हो या कई मसालों के मिश्रण से बने काढ़े ही क्यों नहीं हों। यह अब ज़रूर हो गया की दादी- नानी के नुस्ख़े तात्कालिक उपायों और अन्य सुविधाओं के आने से पीछे डब्बे में बंद हो गया है परन्तु आज भी वे सभी उतने ही कारगर है जीतने पहले थे। दूर दराज़ के इलाक़ों में, कई जगह पहाड़ों पर, कबीलों में तथा बहुतायत आदिवासी क्षेत्रों में अभी भी इन पर विश्वास किया जाता है और उपयोग में लाया जाता है।एलोपैथी दवाओं का स्थान तो सर्वोपरि है ही पर ये भी कुछ कम नहीं है।

संचार सुविधाओं के बढ़ जाने से प्राकृतिक उपचार घर बैठे उपलब्ध तथा लोकप्रिय हो रहे हैं। घरेलू उपचार के फ़ायदों के कारण हज़ारों वर्षों से दादी - नानी के नुस्खों के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक प्रचार द्वारा संप्रेषित हो रहे हैं। इनके कुछ मुख्य कारण है कि इनको प्रयोग के लिये तैयार करना आसान है और बिना किसी विशेषज्ञता के केवल सावधान पूर्वक प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है। साधारण तौर पर घर में प्रयोग किया जाने वाले सामग्री से तैयार होने के कारण शरीर के लिए विशेष तौर पर हानिकारक नहीं होता है। सबसे विशेष बात की लागत भी बहुत कम ही होती है।

प्रयास रहेगा कि नुस्ख़े ढूँढ ढूँढ कर कई अंकों में क्रमशः सम्मुख प्रस्तुत किया जा सके। सभी अंक संग्रहणीय रहेगा जो कभी भी अत्यंत आवश्यक घड़ी में सहायक के रूप में रहे। युवा हस्ताक्षर के कारण प्रारम्भ छोटी मोटी चोट लगने पर दादी - नानी उपचार के लिए जो उपयोग करती है उनका विवरण संक्षिप्त में प्रस्तुत है:

मोच का दर्द परेशान कर रहा है तो एक ग्लास गर्म दूध में आधा चम्मच फिटकरी (Alum) मिलाकर पीने से मोच के दर्द में काफी राहत मिलती है। मोच लगने के तुरंत बाद कपड़े में बर्फ रख कर सिकाई करने से सूजन नहीं होती तथा दर्द में भी आराम मिलता है। लौंग के तेल को मोच वाले जगह पर लगा कर अच्छे से मालिश करने से माँसपेसी के दर्द में आराम मिलता है। इसे दिन में 4 से 5 बार करना चाहिए।दर्द में आराम मिलेगा।

हल्दी मिलाकर हल्का गर्म दूध पीने से दर्द कम होता है। थोड़े से पानी में दो चम्मच हल्दी डालकर उसका पेस्ट बना कर मोच वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है। लगभग 3 घंटे के बाद हल्के गर्म पानी से साफ कर लें। यह प्रक्रिया दो तीन बार करनी चाहिए।

सेंधा नमक मांसपेशियों के दर्द, ऐंठन तथा सूजन को कम करने में मदद करता है। हल्के गर्म पानी में सेंधा नमक डालकर मोच वाली जगह पर सिकाई करने से आराम मिलता है।

अरंडी के तेल हड्डियों के दर्द को कम करने में कारगर होता है। मोच को ठीक करने के लिए अरंडी के तेल उपयोगी माना गया है।अरंडी के तेल से मालिश करने से सूजन एवं ऐंठन कम होती है। गठिया रोग में भी लगाने से फ़ायदा होता है।

अंदरूनी चोट प्रारंभ में तो इतना परेशान नहीं करते परन्तु कभी कभी काफ़ी समय निकलने के बाद भी बरसाती हवाओं में या सर्द हवाओं में परेशान करते है और असहनीय दर्द होता है। ऐसे समय में नीचे दिये कुछ नुस्ख़ों से आराम पा सकते हैं। चोट वाली जगह पर लगी शहद और खाने वाला चूना मिलकर लगाने से असहनीय दर्द से छुटकारा मिलता है।

हल्दी और प्याज़ को पीस कर सरसों के तेल में तवे पर थोड़ा पका कर सहने लायक़ ठंडा कर चोट वाली जगह पर रात भर बांध कर रखें।

(ऊपर दी गई जानकारियां और सूचनाएँ सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। युवा हस्ताक्षर इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।)

संकलन: युवा हस्ताक्षर रिसर्च टीम

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