बदलते समय में पीढ़ियों के बीच की बढ़ती दरार और सामंजस्य की आवश्यकता
- Pooja 21
- 18 Oct, 2024
आज कल अक्सर देखा गया है कि पीढ़ियों के बीच की दरार बढ़ती ही जा रही है।पीढ़ियों जो लगभग समाप्त होने के कगार पर हैं समझती है कि उनका जमाना बहुत अच्छा था, लोगों में मेलजोल की भावना थी, एका था और एक दूसरे के काम सभी आते थे। शादी विवाह में भी मेहमान चाहे बड़ा घर हो या छोटा एक ही जगह समा जाते थे कभी कोई शिकायत नहीं,कभी कोई प्राइवेसी की बात नहीं करता था।रिश्तेदारों की इज्जत दिल से होती थी, मान मनव्वल होती थी, नाना - नानी, दादा- दादी के घर छुट्टियों में जाना एक निश्चित प्रथा थी जहां सभी परिवार के लोग इकट्ठा होते थे, हंसना, रोना, बच्चों में खेल कूद, लड़ाई झगड़ा सभी देखना परंपरा बनी हुई थी। सभी कार्य मिलजुल कर ही घर में हो जाते थे।धीरे धीरे नए युग में आते आते पीढ़ी की प्राथमिकता बदलती गई।नाना - नानी, दादा- दादी के घर जाने में बच्चों को असुविधा होने लगी, गर्मियों में ठंडी जगह जाना और सर्दियों में गरम स्थान पर जाना ज्यादा आवश्यक माना जाने लगा, परिपाटी चल पड़ी, सोसाइटी में गर्व की बात मानी जाने लगी। प्रयास प्रारंभ हो गए कि एकल परिवार ही रहे, बड़े बुजुर्ग, थोड़े थोड़े अनवांटेड से होने लगे। प्राइवेसी की बात ज्यादा महत्वपूर्ण होती गई। शायद इस पीढ़ी के लिए एक कमरे में बंद होकर रहना ही प्राइवेसी का पर्याय हो गया। इन्हें लगने लगा कि प्राइवेसी नहीं होगी तो घर संसार, परिवार कैसे आगे बढ़ेगा, शायद वो भूलने लगे कि पहली की पीढ़ी में प्राइवेसी नहीं होती तो वे भी तो नहीं होते। समाज में जितना शिक्षा का प्रचार और प्रसार हुआ उतना ही सोच में बदलाव आने लगा। नई पीढ़ी में व्यग्रता बढ़ने लगी, शायद कंपटीशन ने उनके मन की शांति छीन लीं है। अपनी बात को ही सर्वोपर रखने की आदत बनती गई और पुरातन की सोच उनके लिए बेमानी, बेकार और सम सामयिक नहीं लगने लगी। वो भूलने लगे कि जहां आज वे हैं उस अवस्था में लाने में देश के पुरातन को कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी। उन्हें तो पकी पकाई खीर मिल गई है जिसे आगे और ले जाना उनकी जिम्मेदारी है क्योंकि अगली पीढ़ी के लिए भी तो कुछ करना है। ऐसा नहीं कि पुरातन चूक गए हैं पर समाज, देश को आगे बढ़ाने और परिवार में सामंजस्य रखने के लिए उन्होंने भी बहुत समझौते किए होंगे। नई खेप को उनकी महत्ता, विचार और ज्ञान को मान देना होगा क्योंकि उनकी पुस्तकों को पढ़कर ही तो डॉक्टरेट प्राप्त करते है। सभी पीढ़ियों को। सामंजस्य से रहना होगा, चलना होगा।परिवार धीरे धीरे फिर पुरानी पद्धति पर लौट रहा है। देखिए और आगे क्या होगा....
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