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बच्चो में मोबाइल की बढ़ती लत

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मोबाइल की बढ़ती लत...

मोबाइल की बढ़ती लत विशेषकर युवा और बच्चों के बीच चिन्ता बढ़ा रही है। छोटे बच्चे हानि कारक और हानि रहित गतिविधियों के बीच अंतर करने में सक्षम नहीं होते हैं।वे केवल आनंद के सिद्धांतों पर चलते हैं। दूसरे शब्दों में, वे हमेशा वही करने के लिए उत्साहित होते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है। मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग और सोशल मीडिया आदि छोटे बच्चों के लिए उपयोगी गतिविधियाँ नहीं हैं और यदि वे इनमें अत्यधिक शामिल हो जाएं तो उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।

वैसे तो आज की इंटरनेट की हायपर कनेक्टेड दुनिया में मोबाइल फोन एक आवश्यकता बन गया है। इस स्मार्टफोन क्रांति में बच्चे भी पीछे नहीं रहे हैं। छोटे बच्चे और वो भी बहुत कम उम्र के, में शुरू से ही मोबाइल फोन की आदत पड़ जाती है। व्हाट्सएप पर अपने दोस्तों के साथ चैट करने से लेकर, इंस्टाग्राम पर तस्वीरें साझा करने, फेसबुक पर मेसेज पोस्ट करने या यूट्यूब पर वीडियो देखने या असंख्य गेम खेलने तक सभी में उनकी पहुँच हो गई है । बच्चे अब हर दिन अपने मोबाइल फोन पर घंटों बिता रहे हैं। इसमें केवल बच्चों को दोष क्यों दें, माता - पिता भी उतने ही ज़िम्मेदार है। दोनों के पास समय का अभाव है, बच्चों की ज़िद तो होती ही है, उन्हें बहलाने फुसलाने में समय लगेगा, उन्हें बाहर ले नहीं जा सकते तो वो भी क्या करें। बच्चों को बहलाने के लिए तमाम प्रोग्राम ऑन लाइन उपलब्ध है, बस क्या करना है उसे ऑन करना है, बच्चे धीरे धीरे उसको पसंद करने लगते हैं और फिर माता पिता व्यस्त हो जाते हैं। अब तो एकल परिवार है, आज़ादी और प्राइवेसी के नाम पर अधिकतर बच्चों के माता पिता अपने माँ - पिता को साथ नहीं रखना चाहते या ये भी होता है की माँ - पिता भी कहीं व्यस्त होते है और अपने बेटा- बहू या पुत्री- दामाद के साथ नहीं रह पाते तो पोता - पोती या नाती- नतिनी की देखभाल के लिए उपलब्ध नहीं होते। ऐसी अवस्था में पूरी जिम्मेदारी बच्चे के माता- पिता पर ही आ जाती है।वो  कैसे परिवार और कार्य में तारतम्य बनाएँ तो बच्चों को उलझाने सबसे आसान है कि मोबाइल पर कार्टून लगा दिया या अन्य तमाम कार्यक्रम आते हैं उन्हें लगा देते है। घर का काम भी आसानी से हो जाता है और स्वयं भी मोबाइल की तो आदत है वो भी पूरी हो जाती है। अब एक्सटेंडेड फ़ैमिली की तो बात ही नहीं है। हाँ, कोई गवर्नेंस या नैनी रखने का प्रयास किया तो ठीक है परंतु सामने तो ठीक से बच्चों की देख रेख हो जाएगी लेकिन फिर, दोनों को तो कार्य से जाना है या घर पर ही करना तो भी बच्चों से ध्यान हटेगा और गवर्नेंस या नैनी अधिकतर देखा गया है कि वो बच्चों को मोबाइल में उलझा देंगी। उन्हें भी तो अपनी मोबाइल की कमिटमेंट पूरी करनी है। इतने लुभावन, मन भावने प्रोग्राम को देखने के बाद बच्चा अपने आप उसमें लिप्त हो जायेगा और फिर कुछ दिन बाद वो एडिक्ट हो जाता है। तब आँख खुलती है परंतु बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसा कहा जाता है कि मोबाइल फोन विकिरण भेजते और प्राप्त करते हैं जो बच्चों के मस्तिष्क और अन्य शरीर के अंगों के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे अध्ययन भी हैं जो इन विकिरणों को ट्यूमर के संभावित कारण के रूप में इंगित करते हैं। कुछ अध्ययन मोबाइल फोन को लंबे समय तक पास में रखने के खिलाफ चेतावनी देते हैं।हालाँकि ये दावे अनिर्णायक हैं। परंतु यह साबित हो चुका है कि लंबे समय तक मोबाइल फोन स्क्रीन के संपर्क में रहने से आंखों पर काफी दबाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर दृष्टि समस्याएँ हो रही हैं। बच्चे इंटरनेट ब्राउज़ करते समय, वेब सीरीज़ देखते हुए या वीडियो गेम खेलते हुए लंबे समय तक स्क्रीन देखते रहते हैं। आँखों की समस्यायें बढ़ती जा रही है।इतने लंबे समय तक स्क्रीन के संपर्क में रहने से नींद की कमी हो जाती है।मोबाइल फोन के स्क्रीन पर बिताया जाने वाला अधिकांश समय मनोरंजन के कार्यक्रमों में व्यतीत होता है, जिसमें कोई मस्तिष्क की गतिविधि शामिल नहीं होती है। इससे मस्तिष्क का विकास रुक जाता है।

यह बच्चों के लिए और भी चिंताजनक हो सकता है क्योंकि उनका मस्तिष्क विकास के महत्वपूर्ण चरण में होता है। मस्तिष्क को सर्वोत्तम रूप से विकसित करने के लिए नियमित व्यायाम की भी आवश्यकता होती है। मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से बच्चों के मस्तिष्क के इष्टतम विकास में बाधा आ सकती है।बच्चों में मोबाइल फोन देखने की लालसा बढ़ती ही जाती है और अधिकतर वो लेटते समय या किसी अजीब मुद्रा में बैठे हुए देखते हैं। इसके दो गंभीर प्रभाव पड़ते हैं, एक- तो यह कि गलत मुद्राओं से उनके नाजुक शरीर को शारीरिक नुकसान पहुंच सकती हैं। दो - गतिहीन जीवनशैली मोटापा, सुस्ती, अवसाद आदि जैसी कई समस्याओं को जन्म दे सकती है।बच्चों की हड्डियाँ मुलायम होती हैं जिनका आकार उन्हें लम्बे समय तक जिस आसन में रहते हैं वैसे ही होने लगती है।जिस आसन में शरीर को रखते हैं वही आकार धारण करने  लगते हैं। विकृत और एर्गोनोमिक मुद्राओं का उनके भविष्य पर गंभीर प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो जाती है। लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से वे मोटापा, मधुमेह, रक्तचाप आदि जैसी जीवनशैली संबंधी समस्याओं के प्रति भी संवेदनशील हो सकते हैं। बच्चे जितना अधिक समय मोबाइल फोन पर बिताते हैं, उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए उतना ही कम समय उपलब्ध होता है। इसका उनकी शैक्षणिक प्रगति और प्रदर्शन पर स्पष्ट प्रभाव पड़ सकता है।

सोशल मीडिया और इंटरनेट का अपना आकर्षण है। ध्यान भटकाने वाली बात को पकड़ना आसान है जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट-आधारित सोशल नेटवर्क अपनी एक आभासी दुनिया बनाते हैं। आभासी दुनिया में

अधिक शामिल होने से सामाजिक मेलजोल कम हो जाता है। बच्चों में पारस्परिक कौशल का विकास बाधित होता है। शारीरिक सामाजिक संपर्क की कमी से बच्चों में महत्वपूर्ण विकास सम्बन्धी कमियाँ हो सकती हैं, जैसे अंतर्मुखी होना, ख़राब संचार कौशल, ख़राब नेटवर्किंग कौशल और पारस्परिक और सामाजिक कौशल की कमी होने लगती है।

अध्ययनों से पता चला है कि बच्चों की अस्थि मज्जा वयस्कों की तुलना में दस गुना अधिक माइक्रोवेव विकिरण को अवशोषित करती है। बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी और अन्य तकनीकी रूप से परिष्कृत सरकारें बच्चों द्वारा वायरलेस उपकरणों के उपयोग के बारे में कानून पारित कर रही हैं या चेतावनी जारी कर रही हैं। उन्होंने यह भी कानून बनाया कि स्मार्टफोन निर्माता शरीर से न्यूनतम दूरी निर्दिष्ट करते हैं कि उनके उत्पादों को रखा जाना चाहिए ताकि माइक्रोवेव विकिरण के संपर्क में आने की कानूनी सीमा पार न हो। आईपैड, लैपटॉप कंप्यूटर और टैबलेट के लिए, डिवाइस से बॉडी तक की न्यूनतम दूरी 20 सेमी (लगभग 8 इंच) है।

अच्छा स्वास्थ्य धन से ऊपर है, लेकिन मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग को कम करने का प्रयास कर नहीं पाते और दिन-ब-दिन बच्चे मोबाइल के लत में लिप्त होते ही जाते है। अभिभावक या माता - पिता बच्चों की मानसिक और शारीरिक स्थिति के प्रति अधिक लापरवाह हो जाते हैं। एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि दुनिया की 92% आबादी के पास मोबाइल फोन है। जिनमें से 31% मानते हैं कि वे अपना मोबाइल फोन कभी बंद नहीं करते। 90% से अधिक माता-पिता अपने बच्चों को सेल फोन उपलब्ध कराते हैं, ताकि वे जब चाहें आसानी से उनके संपर्क में रह सकें। बच्चे छोटी उम्र से ही लंबे समय तक लगातार स्मार्टफोन से चिपके रहते हैं। कुछ माता-पिता इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि कैसे उनके छोटे बच्चे ऐप्स और स्मार्टफोन के माध्यम से बड़ी आसानी से नेविगेट कर सकते हैं, जबकि कुछ माता-पिता अपने बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव को समझे बिना अपने बच्चों को पूरे दिन स्मार्टफोन का उपयोग करने, यूट्यूब वीडियो देखने, गेम खेलने और सोशल मीडिया का उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
माता-पिता के रूप में, अपने बच्चों को सोशल मीडिया के खतरों, खतरों और सुरक्षा उपायों के बारे में बताना होगा और उन्हें अवांछित संचार को रोकना सिखाना होगा, क्योंकि सतर्क रहना और अपने बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखना एक ज़िम्मेदारी है। माता-पिता अपने बच्चों को स्मार्टफोन के इस्तेमाल के लिए उचित मार्गदर्शन और प्रबंधन दें, तो यह उनके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है, लेकिन उचित मार्गदर्शन के अभाव में स्मार्टफोन की कमियां और बच्चों के विकास, स्वास्थ्य और पढ़ाई पर इसका नकारात्मक प्रभाव चिन्ता का विषय है।

इस कारण अभिभावकों या माता-पिता को संभावित हानिकारक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए मोबाइल फोन के उपयोग को संतुलित करने का प्रयास करना चाहिए।ज़िम्मेदार माता - पिता या अभिभावक होने के नाते बच्चों का मार्गदर्शन करना कर्तव्य है। अगर कठोरता आती है तो भी इसका कठोरता से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यह भविष्य से जुड़ा प्रश्न है।

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