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प्रणाम या नमस्ते - क्यूँ, कब और कैसे ?

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अपनी हथेलियों को एक साथ मिलाकर रखना और अक्सर अभिवादन करने वाले व्यक्ति के पैरों को छूकर किया जाने वाला एक सम्मानजनक अभिवादन एक संभावित व्यक्ति के लिए अपना आदर प्रदर्शित करने का भाव माना जाता है। भारतीय परंपराओं में किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह और मन्दिरों में देवताओं का अभिवादन इसी प्रकार दर्शनार्थी करते हैं। इसके लिए नमस्ते या प्रणाम कहकर और कहीं कहीं वास्तव में मूर्ति के पैर छूकर अपना सम्मान व्यक्त करना एक परंपरा है।

प्रणाम शब्द की उत्पत्ति क्या है?

प्रणाम संज्ञा का सबसे पहला ज्ञात प्रयोग 1840 के दशक में हुआ था। प्रणाम के लिए ओईडी का सबसे पहला साक्ष्य 1845 में हेनरी मियर्स एलियट के लेखन में मिलता है।

प्रणाम संस्कृत से लिया गया शब्द है:

व्युत्पत्तियाँ: संस्कृत प्रणाम। साथ ही बौद्धों की संस्कृति में भी इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। नमस्ते के समान अन्य शब्द नमस्कार, नमस्कारम और प्रणाम हैं। प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार, ये पारंपरिक अभिवादन के रूप हैं जिसका अर्थ किसी चीज़ या व्यक्ति के प्रति सम्मान के साथ झुकना भी है।

प्रणाम


प्रणाम, किसी चीज या किसी अन्य व्यक्ति के सामने सम्मानजनक या आदरपूर्ण अभिवादन (या आदरपूर्ण झुकना) का एक रूप है - आमतौर पर किसी के बुजुर्ग या शिक्षक या वो जिसका अत्यधिक सम्मान किया जाता है।

प्राणामा प्र (संस्कृत: प्र) और अनामा (संस्कृत: अनम) से बना है। उपसर्ग के रूप में प्रा का अर्थ है  ''आगे, सामने, पहले, बहुत, या बहुत अधिक'' जबकि अनामा का अर्थ है ''झुकना या खींचना''।संयुक्त रूप से प्रणाम का अर्थ हुआ ''झुकना, सामने झुकना'' या ''बहुत झुकना'' या ''साष्टांग प्रणाम''। सांस्कृतिक दृष्टि से, इसका अर्थ है ''सम्मानजनक अभिवादन'' या ''आदरपूर्वक झुकना'' दूसरे के सामने, यह केवल माता-पिता, ऋषियों, शिक्षकों, विद्वानों, अपने से बड़े तथा बुजुर्गों के लिए उपर्युक्त माना जाता है।बदले में प्राप्तकर्ता आशीर्वाद का हाथ सर पर रखता है या स्वयं दोनों हाथ जोड़ कर अभिवादन का उत्तर देता है।।

प्रणाम के निम्नलिखित छह प्रकार हैं:
अष्टांग (संस्कृत: अष्टङ्ग, शाब्दिक अर्थ आठ भाग), जिसे ''अष्टांग दंडवत'' भी कहा जाता है: शरीर के आठ भाग एक साथ जमीन को छूते हैं, उरस (छाती), शिरस (सिर), दृष्टि (आंखें), मानस (ध्यान), वचन (वाणी), पद (पैर), कारा (हाथ), जाह्नु (घुटना)।

षष्ठांग (संस्कृत: षष्ठङ्ग, शाब्दिक रूप से छह भाग), जिसे ''षष्ठांग दंडवत'' भी कहा जाता है: शरीर के छह भाग एक साथ जमीन को छूते हैं, पैर की उंगलियां, घुटने, हाथ, ठुड्डी, नाक और कनपटी।
पंचांग (संस्कृत: पंचांग, ​​शाब्दिक रूप से पांच भाग), जिसे ''पंचांग दंडवत'' भी कहा जाता है: शरीर के पांच भाग एक साथ जमीन को छूते हैं, घुटने, छाती, ठुड्डी, कनपटी और माथा।
दंडवत (संस्कृत: दंडवत्, शाब्दिक अर्थ: छड़ी): शरीर के चार हिस्सों को एक साथ जमीन को छूना, घुटनों के बल रहते हुए माथे को जमीन पर झुकाना, पैर, माथा और हाथ जमीन को छूते हुए।

''प्रणाम'' और ''नमस्ते'' में क्या अंतर है?


प्रणाम एक अभिवादन है एक ऐसा शब्द है जो श्रद्धा का बोध कराता है। नमस्ते और प्रणाम दोनों ही हाथ जोड़कर कहे जाते हैं, लेकिन प्रणाम सामने वाले व्यक्ति के प्रति अधिक श्रद्धा और सम्मान का संकेत देता है।प्रणाम का प्रयोग सम्मान प्रकट करने के एक तरीके के रूप में किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह दर्शाता है कि दूसरे व्यक्ति को बौद्धिक या शारीरिक रूप से (उम्र, शक्ति आदि के आधार पर) श्रेष्ठ मानते हैं। इसके अलावा यह उक्त श्रेष्ठ व्यक्ति से आशीर्वाद की भी अपेक्षा होती है।

प्रणाम का एक रूप है चरणस्पर्श (संस्कृत: चरणस्पर्श, शाब्दिक रूप से पैर छूना) सम्मान के प्रतीक के रूप में, पैर छूने के साथ झुकना। इसे मंदिरों में दर्शन यह संबंधित प्रकार का प्रणाम भारतीय संस्कृति में सबसे आम है। यह माता-पिता, दादा-दादी, बुजुर्ग रिश्तेदारों, गुरु (शिक्षकों), साधु (संत) और संन्यासी (भिक्षुओं) जैसे बुजुर्ग लोगों के प्रति सम्मान दिखाने के लिए किया जाता है।प्रा (संस्कृत: प्र) और अनामा (संस्कृत: अनाम) प्रणाम (तमिल प्रणाम) का अर्थ है किसी के पैर छूकर अभिवादन करना। यह केवल माता-पिता, ऋषियों, शिक्षकों, विद्वानों और बुजुर्गों के लिए किया जाता है। बदले में प्राप्तकर्ता आशीर्वाद देता हैं ।

प्रणाम कुछ इस तरह है जैसे ''प्राण'' जीवन शक्ति है, ''हूँ'' जाना है। जिसका शाब्दिक अर्थ है कि मैं अपना प्राण तुम्हें देता हूं, लेकिन सरल रूप में यह होगा कि मैं अपना आत्म तुम्हें सौंपता हूं या मैं तुम्हें समर्पित करता हूं। जिसका उत्तर अन्य लोग देंगे जो एक आशीर्वाद होगा क्योंकि वे आपके समर्पण से बहुत खुश हैं, इसलिए यह लगभग हर बार एक वरदान माँगने जैसा है। प्रणाम का प्रयोग स्नेह से किया जाता है, भय से नहीं, इसलिए यह बहुत मधुर भी है और आदान-प्रदान करने वाले छोटे और बड़े व्यक्ति के बीच बहुत मजबूत रिश्ते को दर्शाता है। कई बार लोग इसे यूं ही या परंपरा के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं।

इसका कोई दुष्प्रभाव या समस्या नहीं है।प्राय: प्रणाम का कोई उत्तर नहीं होता। प्रणाम का उत्तर कभी भी प्रणाम कहकर नहीं दिया जाता। ज़्यादातर इसका जवाब आशीर्वाद कह कर दिया जाता है।नमस्कार एक अभिवादन है और इसका त्वरित उत्तर होता है। इसका उत्तर नमस्कार या नमस्ते कहकर दिया जाता है। प्रणाम का सीधा संबंध प्रणत शब्द से है, जिसका अर्थ होता है विनीत होना, नम्र होना और किसी के सामने सिर झुकाना। प्राचीन काल से प्रणाम की परंपरा रही है। जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों के पास जाता है, तो वह प्रणाम करता है। हर व्यक्ति की कामनाएँ अनन्त होती हैं। कैसी कामना लेकर वह व्यक्ति अपने से बड़ों के पास गया है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है। प्रणत व्यक्ति अपने दोनों हाथों की अंजली अपने सीने से लगाकर बड़ों को प्रणाम इस तरह करता है कि वह अपने दोनों हाथ जोड़कर हाथों का पात्र बनाकर प्रणाम कर रहा हो। प्रणाम के समय दोनों हाथ की अंजली सीने से सटी हुई होती है।यही प्रणाम करने की सही परंपरा रही है लेकिन प्राचीन गुरुकुलों में दंडवत प्रणाम का भी विधान था जिसका अर्थ है बड़ों के पैर के आगे लेट जाना। इसका उद्देश्य यह था कि गुरु के पैरों के अंगूठे से जो ऊर्जा प्रवाह हो रहा है उसे अपने मस्तक पर धारण करना। इसी ऊर्जा के प्रभाव से शिष्य के जीवन में परिवर्तन होने लगता है। इसके अतिरिक्त हाथ उठाकर भी आशीर्वाद देने का विधान है। इस मुद्रा का भी वही प्रभाव होता है कि हाथ की उंगलियों से निकला ऊर्जा प्रवाह शिष्य के मस्तिष्क में प्रवेश करें।

परन्तु आज के परिवेश में प्रणाम करने की जो परंपरा है, वह उचित प्रतीत नहीं होती। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रणाम करने वाला न कोई पात्र लेकर या कोई कामना लेकर अपने से बड़ों को प्रणाम करता है और न ही बड़े उन्हें समुचित रूप से आशीर्वाद देते हैं। दोनों तरफ से नकली कारोबार चलता रहता है। इसका परिणाम यह है कि प्रणाम करने वाले तमाम लोग जिस प्रकार इन दिनों प्रणाम करते हैं, उससे ऐसा लगता है कि वे एक नाटक कर रहे हैं। प्रणाम तो हृदय से निकलने वाली कामनाएँ हैं, एक आमंत्रण है। केवल भक्त की आंखों को देखकर ही यह बताया जा सकता है कि प्रणाम असली है या नकली।देश की संस्कृति में प्रणाम हृदय से किया जाता है और जब उस प्रणाम को आशीर्वाद मिलता है तो उसका प्रत्यक्ष फल भी मिलता है, लेकिन यह तभी जब प्रणाम सच्चाई से किया गया हो।दूसरे शब्दों में कह सकते है कि प्रणाम सीधी तरह से बड़ों के समक्ष आत्मनिवेदन है और आत्मनिवेदन कभी भी नकली नहीं होता है । जिन लोगों को अपने से बड़ों का आशीर्वाद चाहिए तो उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम की मुद्रा में खड़ा रहना चाहिए तभी बड़ों के हृदय से आशीर्वाद के रूप में निकला एक-एक शब्द उनके जीवन में परिवर्तन ला सकता है। अगर प्रणाम सच्चाई से किया गया है, प्रणाम हृदय से किया गया है तब उस प्रणाम का जो आशीर्वाद मिलता है तो उसका प्रत्यक्ष फल भी मिलता है । भारतीय धर्मदर्शन में गुरु द्वारा हाथ उठाकर आशीर्वाद देने का विधान भी है। शास्त्रों के अनुसार इस मुद्रा का भी वही प्रभाव होता है। दरअसल जब गुरु हाथ उठाकर आशीर्वाद देते हैं तब उनके हाथ की उंगलियों से निकला ऊर्जा का प्रवाह शिष्य के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाता है जिससे उसके जीवन में परिवर्तन होने लगता है। प्रणाम छह प्रकार के होते हैं:

अष्टांग (अष्ट=आठ; अंग=शरीर के अंग): घुटनों, पेट, छाती, हाथों, कोहनियों, ठुड्डी, नाक और कनपटी से जमीन को छूना।उपनिषदों में उल्लेख किया गया है कि महिलाओं को अष्टांग करने से मना किया गया था, जिसके तहत उन्हें अपनी छाती और गर्भाशय को श्रद्धापूर्वक जमीन पर नहीं छूना था, क्योंकि एक महिला के गर्भाशय और छाती को बहुत संवेदनशील माना जाता था और यहां तक ​​कि थोड़ी सी भी मांसपेशियों में खिंचाव उनके मातृत्व को परेशान कर सकता था।

षष्टाङ्ग (षष्टा = छह; अंग = शरीर के अंग): पैर की उंगलियों, घुटनों, हाथों, ठुड्डी, नाक और कनपटी से जमीन को छूना।

पंचांग (पंच=पांच; अंग=शरीर के अंग): घुटनों, छाती, ठुड्डी, कनपटी और माथे से जमीन को छूना।

दंडवत (डंड = छड़ी): अपने माथे को नीचे झुकाकर जमीन को छूना। 

अभिनन्दन (आपको बधाई हो): छाती को छूते हुए हाथ जोड़कर आगे की ओर झुकें।

नमस्कार: हाथ जोड़कर और माथे को छूकर नमस्ते करने के समान। भारत के विभिन्न राज्यों के अपने सिद्धांत, नियम, रीति-रिवाज, परंपराएँ और अनुष्ठान हैं।हर राज्य में लोगों का अभिवादन करने का भी अलग अलग तरीका है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, लद्दाख, पंजाब और अन्य राज्य अपने अपने अभिवादन के प्रथा को अपनाते हैं।देश में अभिवादन का सबसे आम तरीका नमस्ते कहना है, लेकिन अभिवादन करने के और भी तरीके देश में मिलते हैं। प्रायः देश में अभिवादन के 20 तरीके देखे जा सकते है जो समय और स्थान पर निर्भर करते हैं।

प्रणाम: दोनों हाथों को जोड़कर सम्मान प्रदर्शित करने का यह मुख्य रूप माना जाता है। जिसका प्रयोग अपने से बड़े किसी व्यक्ति का अभिवादन करने के लिए किया जाता है।मुख्य रूप से प्रणाम के छः प्रकार माने जाते हैं। ये हैं अष्टांग, साष्टांग, पंचांग, ​​दंडवत, नमस्कार और अभिनंदन हैं। यह पौराणिक अभिवादन का पुराना रूप है। यह अपने से बड़े किसी व्यक्ति का अभिवादन करने के लिए किया जाता है।उत्तर भारत और विशेष कर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में आमतौर पर लोग इसका इस्तेमाल करते हैं।

वणक्कम: दक्षिण भारत में स्वागत ‘वणक्कम’ कह कर किया जाता है। यह अभिवादन आमतौर पर तमिल, मलयाली लोगों द्वारा किया जाता है।यह अभिवादन का सबसे पुराना तरीका है।

अस-सलाम अलैकुम: अस-सलाम अलैकुम मुस्लिम धर्म के प्रसिद्ध अभिवादनों में से है। किसी से भी मिलने पर ये लोग अस-सलाम अलैकुम कहते हैं।इसका सीधा सा मतलब है आपको शान्ति मिले। इस अभिवादन के जवाब में, लोग आम तौर पर वअलैकुम सलाम कह कर करते हैं जिसका अर्थ है और आपको भी शान्ति मिले।

ख़ुदा हाफ़िज़: यह अभिवादन आमतौर पर देश के इस्लामी धर्मावलंबी द्वारा अपनाया जाता है।एक दूसरे से विदा लेते वक्त खुदा हाफ़िज़ या अल्लाह हाफ़िज़ का इस्तेमाल करते हैं। खुदा हाफ़िज़ या अल्लाह हाफ़िज़ का सीधा सा मतलब है ''ईश्वर को अपना रक्षक बनने दो''।

जय श्री कृष्णा: जय श्री कृष्णा का प्रयोग आमतौर पर देश में सभी लोग करते हैं। गुजरात में तो उनके मुँह से सबसे पहला शब्द जय श्री कृष्णा ही निकलता है।जय श्री कृष्णा का अभिवादन करने का अर्थ है भगवान कृष्ण की जय-जयकार करना।

खम्मा घणी : राजस्थान में प्रयोग में आने वाला अत्यंत लोकप्रिय अभिवादन है। इसके नाम के अंदर एक गहरा अर्थ छिपा हुआ है। इसका मतलब है सभी गिले-शिकवे माफ कर दो और एक नई यात्रा शुरू करो। खम्मा का तात्पर्य ''क्षमा या माफी'' है।

जूली: यह अभिवादन नमस्कार या हेलो से काफी मिलता-जुलता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से देश के लद्दाख राज्य में लोगों का स्वागत करने के लिए किया जाता है। हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इसका उपयोग किया जाता है।

आदाब: यह भी मुस्लिम समुदाय द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग हथेली को ऊपर की ओर रखते हुए और उंगली की नोक को लगभग माथे को छूते हुए हाथ को ऊपर उठाकर किया जा सकता है। इसे अभिवादन के सबसे पुराने तरीकों में से एक माना जाता है।

राधे - राधे: अभिवादन और स्वागत करने का यह भाव मथुरा, वृन्दावन, बरसाना और इसके आसपास के क्षेत्रों में सबसे लोकप्रिय है। यह भाव लोगों द्वारा भगवान कृष्ण के नाम को याद करने के लिए बोला जाता है।

जय झूलेलाल: भगवान झूलेलाल की पूजा सिंधी समुदाय के लोगों द्वारा की जाती है। जब वे किसी से मिलते हैं या किसी को अलविदा कहते हैं तो एक-दूसरे को जय झूलेलाल कहते हैं।

जय भोले/हर हर महादेव : हिन्दू धर्म के लोग जय भोले या हर हर महादेव के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। यह बनारस या हरिद्वार या आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए आम अभिवादन है। जय जय: राजस्थान के बीकानेर शहर में एक और अभिवादन जो सुना जाता है वह है जय जय। बीकानेर में लोगों का स्वागत जय-जय कहकर करते हैं तो उनके मुँह से निकलने वाली ध्वनि बहुत मधुर और मनमोहक होती है।

सुप्रभात: सुप्रभात के बाद शुभ संध्या या शुभ रात्रि का प्रयोग भी अभिवादन के लिए किया जाता है।कभी कभी गुड मॉर्निंग और ईवनिंग जैसे विभिन्न अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी देखा जाता है।

राम राम: यह उत्तर भारत जैसे यूपी, बिहार और हरियाणा में रहने वाले लोगों के लिए सबसे आम अभिवादन है।

चरण वन्दना: चरण वन्दना का उपयोग ज्यादातर हिमाचल प्रदेश राज्य और इसके पड़ोसी शहरों में किया जाता है। इसका आम तौर पर अर्थ है ''पैर और प्रार्थना'' जैसे पैर छूना और उनका आशीर्वाद लेना।

जय जिनेन्द्र: देश में अभिवादन करने का यह भाव जैन धर्म के बीच बहुत आम और लोकप्रिय है। जब उन्हें अपनी यात्रा के लिए अलविदा कहने की आवश्यकता होती है। ढाल कारू : हिमाचल वासियों द्वारा बोला जाने वाला दूसरा आम और पारंपरिक अभिवादन ढाल कारू है। इस अभिवादन का मतलब नमस्ते कहने जैसा ही है। नर्मदा हर: सबसे आम नारा या अभिवादन जो नर्मदा नदी से घिरे क्षेत्रों में अधिक होता है। यह नारा दर्शाता है कि सभी प्रश्नों और समस्याओं का अन्त होना चाहिए। जय माता दी: माता रानी के भक्तों द्वारा इसका उपयोग बहुतायत रूप से किया जाता है। इसका अर्थ है माता की जय हो।

सत श्री अकाल: यह अभिवादन देश के पंजाब राज्य में सुना जाता है। जब कोई लंबे समय के बाद घर आ रहा हो या अपने लिए कुछ जीता हो तो पंजाबी सत श्री अकाल कहकर लोगों का स्वागत करते हैं।

देश में सम्मान पूरे दिल से होते हैं। इन सभी शुभकामनाओं को जानने से भारतीय संस्कृति के बारे में काफ़ी जानकारी मिल जाती है। नमस्ते समान लोगों के बीच अधिक उपयोगी माना जाता है, इसका तात्पर्य है कि यह व्यक्तियों के रूप में हमारे भीतर की दिव्यता को नमस्कार है। इसका निकटतम अंग्रेजी समकक्ष हैलो को कह सकते है।

“नमः+अस्ति” बहुत सरल अनुवाद है, “आपको मेरा सम्मान”। इसे स्वागत करते समय सम्मान देना और विदाई के दौरान सम्मान देना सबसे अच्छा कहा जा सकता है।नमस्ते एक औपचारिक इच्छा है जिसे अधिकतम भारतीय नमस्ते या हैलो के रूप में उपयोग करते हैं। नमस् + ते = नमस्ते, नमस् को ते के साथ जोड़ा गया है जिसका अर्थ है ''आपके लिए''।नमस्ते का अर्थ है ''आपको नमस्कार''। इसका उपयोग आमतौर पर किसी को व्यक्तिगत रूप से संबोधित करते समय किया जाता है। हालाँकि, नमस्ते नमः और ते का एक संयोजन है। नमः- नमस्कार और ते का तात्पर्य ''आप'' से है। इसलिए जब आप नमस्ते कहते हैं तो आप कहते हैं कि आपको मेरा नमस्कार है। नमःकार का उपयोग एकल व्यक्ति के लिए भी किया जा सकता है लेकिन नमस्ते अधिक सटीक लगता है।नमस्ते के साथ आम तौर पर हल्का सा झुकना होता है और यदि जुड़े हुए हाथ काफ़ी ऊपर उठा दिए जाएँ तो यह ''हैलो'' से ज़्यादा ''धन्यवाद'' है।नमस्ते एक दूसरे को बधाई देने का भारतीय तरीका है।नमस्ते की शुरुआत भले ही भारत में हुई हो, लेकिन अब यह एक इशारा और अभिवादन बन गया है जिसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में किया जा रहा है।नमस्ते कहते समय दोनों हथेलियों को छाती के सामने एक साथ रखा जाता है और सिर झुकाया जाता है। यह ग्रंथ, वेदों में वर्णित पारंपरिक अभिवादन की विभिन्न विधियों में से एक है।

नमस्ते के तीन अर्थ क्या हैं?

संस्कृत वाक्यांश नमस्ते नमः से बना है, जिसका अर्थ है ''झुकना, प्रणाम, आराधना,''और संलग्नक सर्वनाम ते, जिसका अर्थ है'' तुम्हारे लिए। ''संज्ञा नमः, बदले में, क्रिया नमति का व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है ''वह झुकती है, झुकती है''।अंग्रेजी में नमस्ते (उच्चारण \NAH-muh-stay\) के बढ़ते उपयोग में धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष संस्कृति एक साथ आती है: यह शब्द हिंदू धर्म और योग दोनों से जुड़ा है। यह शब्द संस्कृत से आया है और इसका शाब्दिक अर्थ है ''आपको प्रणाम करना'' या ''मैं आपको प्रणाम करता हूँ'' और इसका उपयोग अभिवादन के रूप में किया जाता है। नमस्ते या नमस्कार से एक संबंधित शब्द, नमाज़लिक, जिसका अर्थ है ''प्रार्थना गलीचा'' मेरियम-वेबस्टर के 1934 अनब्रिज्ड संस्करण, वेबस्टर्स सेकेंड में दर्ज किया गया था। यह तुर्की शब्द नमाज़ से आया है जिसका अर्थ है ''पूजा अनुष्ठान, प्रार्थना'' और मध्य फ़ारसी और अवेस्तान (सबसे पुरानी ईरानी भाषा) से नमह्या- ''सम्मान करना, श्रद्धांजलि देना'' तक जाता है, जो नुम- ''झुकना'' का व्युत्पन्न है। ), जो बिल्कुल संस्कृत नमति से मेल खाता है।जिससे दूर से संबंधित भाषाओं की प्राचीन जड़ों के माध्यम से प्राचीन भाव और प्रार्थना आसनों की प्राचीन परंपरा को जोड़ा जाता है।

नमस्ते का अर्थ

नमस्ते और इसके सामान्य रूप नमस्कार, नमस्कार या नमस्कारम, वेदों में वर्णित औपचारिक पारंपरिक अभिवादन के पांच रूपों में से एक है। प्रणाम करने से शरीर और मन को शांति मिलती है और ताजगी मिलती है। दैनिक अनुष्ठान के रूप में अभ्यास करने पर सम्मान और विनम्रता की भावना और तीव्रता बनी रहती है और बढ़ती है।

नमस्ते या नमस्कार मुख्यतः हिंदुओं और भारतीयों द्वारा एक दूसरे से मिलने पर अभिवादन और विनम्रता प्रदर्शित करने हेतु प्रयुक्त शब्द है। इस भाव का अर्थ है कि सभी मनुष्यों के हृदय में एक दैवीय चेतना और प्रकाश है जो अनाहत चक्र(हृदय चक्र) में स्थित है। यह शब्द संस्कृत के न शब्द से निकाला है।इस भावमुद्रा का अर्थ है एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना। दैनन्दिन जीवन में नमस्ते शब्द का प्रयोग किसी से मिलने हैं या विदा लेते समय शुभकामनाएँ प्रदर्शित करने या अभिवादन करने हेतु किया जाता है। नमस्ते करने के लिए, दोनो हाथों को अनाहत चक पर रखा जाता है, आँखें बंद की जाती हैं और सिर को झुकाया जाता है। इसके अलावा पहले अपने मन को एक गहरी सांस के साथ शांत करें।सांस छोड़ते या सांस छोड़ते हुए हथेलियों को चेस्ट के सामने लाएं।हथेलियों को थोड़ा दबाएं। आपकी उंगलियां ऊपर की ओर होनी चाहिए और अंगूठे को छाती से स्पर्श करना चाहिए।कमर से थोड़ा झुकना चाहिए और उसी समय गर्दन को थोड़ा झुकाना भी चाहिए और फिर नमस्ते का उच्चारण करना चाहिए।सिर झुकाकर और हाथों को हृदय के पास लाकर भी नमस्ते किया जा सकता है। दूसरी विधि गहरे आदर का सूचक है।नमस्ते शब्द अब विश्वव्यापी हो गया है। विश्व के अधिकांश स्थानों पर इसका अर्थ और तात्पर्य समझा जाता है और लोग प्रयोग भी करते हैं। फैशन के तौर पर भी कई जगह नमस्ते बोलने का रिवाज है। यद्यपि पश्चिम में ''नमस्ते'' भावमुद्रा के संयोजन में बोला जाता है, लेकिन भारत में ये माना जाता है कि भावमुद्रा का अर्थ नमस्ते ही है और इसलिए, इस शब्द का बोलना इतना आवश्यक नहीं माना जाता है।

हाथों को हृदय चक्र पर लेन से दैवीय प्रेम का बहाव होता है। सिर को झुकाने और आँखें बंद करने का अर्थ है अपने आप को हृदय में विराजमान प्रभु को अपने आप को सौंप देना। गहरे ध्यान में डूबने के लिए भी स्वयं को नमस्ते किया जा सकता है। जब यह किसी और के साथ किया जाए तो यह एक सुंदर और तीव्र ध्यान होता है। एक शिक्षक और विद्यार्थी जब एक दूसरे को नमस्ते कहते हैं तो दो व्यक्ति ऊर्जात्मक रूप से वे समय और स्थान से अलग एक जुड़ाव बिन्दु पर एक दूसरे के निकट आते हैं और अहं की भावना से मुक्त होते हैं। यदि यह हृदय की गहरी भावना से मन को समर्पित करके किया जाए तो दो आत्माओं के मध्य एक आत्मीय संबंध बनता है। आदर्श रूप से, नमस्ते कक्षा के आरंभ और समाप्ति पर किया जाना चाहिए क्योंकि तब मन कम सक्रिय होता है और कमरे की ऊर्जा अधिक शांत होती है। छात्र नमस्ते कहकर अपने अपने शिक्षकों का अभिवादन करते हैं और शिक्षक नमस्ते कहकर अपने छात्रों का

स्वागत करता है कि वे भी उतने ही ज्ञानवान बनें और उनमें सत्य का प्रवाह हो।नमस्कार या नमस्ते महिला और पुरुष दोनों ही कर सकते हैं। नमस्कार (संस्कृत: नमस्कार, शाब्दिक आराधना) माथे को छूते हुए हाथ जोड़ना। यह लोगों के बीच व्यक्त किये जाने वाले अभिवादन रूप है।क्षमायाचना के रूप में: जब किसी व्यक्ति का पैर गलती से किसी पुस्तक या किसी लिखित सामग्री (जिन्हें ज्ञान की देवी सरस्वती का स्वरूप माना जाता है), धन (जिसे ज्ञान की देवी सरस्वती का स्वरूप माना जाता है) को छू जाता है, तो दाहिने हाथ से हाथ के इशारे से माफी मांगना एक हिंदू परंपरा है।
नमस् + कृ = नमः कार = नमस्कारः
नमस् का अर्थ है नमस्कार। इसे क्रिया कृ के साथ मिलाकर नमस्कार शब्द बनाया जाता है। नमस्कार शब्द का समग्र अर्थ है ''किसी के सामने झुकना या किसी को सलाम करना''।नमस्ते भगवान के प्रति श्रद्धा और समर्पण में हथेलियों को जोड़ना और सिर झुकाना के समान है। यह इस मान्यता के रूप में भी पेश किया जाता है कि ईश्वर सर्वोच्च है, और सभी का आश्रय और रक्षक है। श्रद्धालु भगवान का नाम लेते हैं और प्रार्थना करते हैं, शांति और खुशी के लिए उनकी कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं।

एक साथ कई लोगों का अभिवादन करते समय ''नमस्(ह)कार'' (संस्कृत ''नमःस्कारः'' नहीं) का उपयोग किया जाता है। जैसे लोगों के एक समूह के सामने भाषण की शुरुआत, या पहले से इकट्ठे समूह के पास आने वाला कोई व्यक्ति नमस्कार कह कर अभिवादन करे तो वह यथोचित होता है।

अरुण कुमार
चिन्तक एवं सामाजिक विश्लेषक

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