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मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठना चाहिए ?

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मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठना चाहिए-


 सनातन धर्म की मान्यता है कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के पश्चात  बाहर आकर मंदिर की पैड़ी, ऑटले या चबूतरे पर थोड़ी देर बैठना चाहिए ।  परंतु अब इस भाग दौड़ की जिंदगी में मन्दिरों में जाना ही काम हो गया है फिर दर्शन के बाद बैठना सबको बहुत भारी लगता  लोगो को समय मिलता है तो मोबाइल पर घर, व्यापार और रिश्तेदारों की बातों को अधिक  करना पसंद करते है।  लेकिन इस के कारण जानना बहुत ही रोचक है और इस परंपरा के पीछे  क्या कारण है यह जानना भी आवश्यक है।
यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई  थी । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के  दर्शनार्थी  को एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक  अब बहुत से   लोगो को ज्ञात ही नही होगा। 
 इस श्लोक  को  जानना और  आने वाली पीढ़ी को भी बताना सनातन धर्म की  सेवा होगी।

 श्लोक निम्न  है :-
अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

 श्लोक का अर्थ है:- अनायासेन मरणम् -------- अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।
 बिना देन्येन जीवनम् ---------अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना  रहना पड़े। दूसरे पर आश्रित   नहीं हों, बेबस ना हो । ईश्वर   की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर कर सके ।
 देहांते तव सानिध्यम --------अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं  कृष्ण जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए थे और उनके दर्शन करते हुए प्राण  पखेरू निकले थे ।
देहि में परमेशवरम्-----अर्थात हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।

जो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं या ये  प्रार्थना करते  हैं कि प्रभु उन्हे ये भौतिक सुख जैसे गाड़ी,लड़का ,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन  दे दें उन्हे सोचना चहिए कि यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको  दे देते हैं । फिर उन्हें क्या मांगना। इसीलिए दर्शन करने के उपरांत बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । यह प्रार्थना है, याचना नहीं है।  याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी ,पुत्र ,पुत्री ,सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है। प्रार्थना करना हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट,श्रेष्ठ निवेदन। 

यदि किसी कारण श्लोक नहीं भी बोल सकें तो भी मंदिर की पैड़ी पर जरूर 2 मिनिट बैठेना  चाहिए,   मन्दिर के दर्शन का पुण्य  प्राप्त करने के लिए। 

सब से जरूरी बात- 


जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करना चाहिए।

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